Tuesday, August 6, 2013

वो गांव कि यादें पल पल कि बातें आज सताती है
सोचता हूँ रात ओर दिन फिर भी वापस नही आती है.
आज के लिए कल को मैंने गबया है
पता नही क्यो आज् फिर अपना गांव याद आया है.
वो गांव कि हवाये ओर बरिस जिसने मुघे भिगोया था
आज भी उस गिले कपड़े का एहसास है.
मेरे ज़हन में गांव कि लाखों बात है .
ऐसा लगता है कि आज भी गाव मेरे दिल के पास है.
दिल ने जिसे अपना कहा वो बात भी याद है
दिल जिसको चाहता था आज वो भी मेरे पास है.
ना जाने क्यो आज दिल फिर गाँवों कि यादों को खुरेदा है
ना भुलाने कि बीमरी तो पहले से थी आज कुछ ओर लम्हों को अपने ज़हन में समेटा है.
दोस्तों का मिलना सावन मैं पेड़ के पत्तों का हिलाना आज भी याद है.
खेतों में लह लहाती धान
बचपन में मुँह का मीठा पान
आज भी याद है वो बचपन ओर जवनी
जिसमे हर रोज़ बनती थी नई कहानी.
बस यही है कहना कि कभी गांव की यादों को कोई मत भुलाना.
क्योकि गांव की याद ओर मौसम कि बरसात कही कि भी हो अछि लगती है.
 (तिवारी)

    

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