जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महँ है
वास्तव में जिस धरती पर हम जन्म लेते है
जिस पर पल कर बड़े होते है उसके प्रति स्नेह उत्पन्न होना चाहिए ।
जिसके मिटी से हमारा शारीर बना है
उसका ऋण हम कभी भी चूका सकते है
यदि हम देस के संस्कृति ,परम्पराओ, प्रकृति सोंदर्य में अपना मन रमाये ।
यहाँ के ज्ञान को समझे तो हमारे भीतर देस के प्रति लगाव बढ़ेगा ।
देस्भक्ति की भावना बढ़ेगी ।
हमारा प्रत्येक काम स्वार्थ हित न होकर देसौन्मुख होता है।
यह हमारा कर्त्तव्य है कि जो धरती हमारा पालन करती है ।
उसके प्रति प्रेम को हम प्रदर्शित करे
और सबके हित में सोचे ।
सायद अब समय फिर से आ गया है कि हम सब मिलकर अपने देस के प्रति सोचे
क्योकि अब न रहीम आएगा न राम आएगा ।
इन्सान ही इन्सान के काम आयेगा ।
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