Friday, March 19, 2010

दर्द के शैलाब में महिलाएं

कोई क्यों नहीं समझ पा रहा है महिलाओं का दर्द
भारत वही देस है जहाँ महिलाओं कों कभी पूजा जता था , और अज्ज भी भुत जगहों पर पूजा जाता है आज भी सभी जगहों पर नवरात्र के समय मई लड़किओं की पूजा की जाती है खाश कर नवालिग़ लड़किओं को भाग्मं का रूप मानकर पूज जाता है ये वही देस है जहा धीरे-धीरे समाज में महिलाओं का स्तर गिरता जा रहा है समाज में एक तरफ सर्कार महिला को आगे ले जाने की बात करती रहती है सरकार चाहे कोई भी हो लकिन महिलाओं को लेकर तो राजनीती करती नज़र आ ही जाती हैलकिन देखा जय तो महिलएं आज भी कही शुर्क्षित नही है सरकार दावे पे दावे तो करती जरुर नज़र आती है पर सारे दावे तो खोखले ही नज़र आती है समाज में आज महिलाएं आज दर्द के शैलाब में है लेकिन देखने वाल कोई नहीं है समाज में जो इज्जत महिलाओं को पहले मिलती थी वो अब सायद कही देखने को भी नही मिलती हैआखिर क्या कारन है किसी ने कभी ध्यान ही नहीं दिया समाज में तो महिलाओं का इज्जत का तो बात छोड़ ही दीजिये महिलाओं के साथ आज जो हो रहा है वो सब तो आप के सामने ही है महिला हो या बालिग लड़की या फिर छोटी सी बच्ची ही क्यों न हो सब मिलकर एक साथ दर्द के आशुओं को पि -पि कर जिए जा रहे है समज के कुछ दर्न्दों ने किसी भी उर्म के महिलों को नहीं छोड़ा लकिन फिर भी हल जैसा का तैसा ही है हवस के भूखे दरिन्दे आज भी खुलम घूम रहें है जिसके करण हर दिन अकह्बर हो या न्यूज़ चन्नेल बलात्कार का मामला जरुर सामने आता है कई महिलाएं संगठन भी है लकिन फिर भी कोई सुधर नहीं देखा जा रहा है इन सभी चीजों को देख कर टन ऐसा ही लगता ही की हमारे समाज में बलात्कार की बढती घटनाये गहरी चिंता विषय बनी हुई है अगर अकेले राजधानी देल्ली की बात की जाये तो हर साल ५०० से ६०० के आस पास बलात्कार का मामला दर्ज होतें है और देस भर की बात नकी जाये तो ये अकड़ा १५००० हज़ार के अस पास होता है लकिन वास्तव में यह दर्ज मामले कही दर्ज मामले से कई गुना अधिक होता है क्योंकि घर परिवार ,समाज ऐसी घटनाओं को लोक लाज के कारन भय से दबा देते हैं या पिरित खुद ही चुप रह जाती है या कभी कभी पीड़ित पक्ष को भादोसा नहीं होता है की रशुख वाले बड़े लोगों के खिलाफ खड़े होने के बाद न्याय मिल ही जायेगा यह भी सच्ची है है की महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचार में उनके परिचित की भी भूमिका होती है
जो अम्म तौर पर परिवार के पवित्रता के नाम पर दबी ही रह जाती है कोई इन्सान अच्छा कर्म करे या बुरा कर्म करने के लिए सव्त्रंत्र है यदि उसके कार्य से किसी दुश्रे पर कोई प्रभाव नहीं परता हो या दुश्रे किसी से कोई सम्बन्ध नहीं हो बलात्कार का अर्थ जबरदस्ती से होता है यानि बिन स्वीकृति का जो हिंशा है और यह कर्म करने के लिए कोई स्वतंत्र नही है किसी को किसी के साथ किसी भी तरह की हिंसा की इजाजत नहीं दी जा सकती

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