Saturday, March 20, 2010

माँ

लबों पर उसके कभी बददुआ नहीं होती, बस एक माँ है जो कभी खफ़ा नहीं होती। इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती हैमाँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है। मैंने रोते हुए पोछे थे किसी दिन आँसूमुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुप्पट्टा अपना।अभी ज़िंदा है माँ मेरी, मुझे कुछ भी नहीं होगा,मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है।जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है,माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है।ऐ अंधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया,माँ ने आँखें खोल दी घर में उजाला हो गया।मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फरिश्ता हो जाऊंमां से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ।

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