Sunday, July 18, 2010

माटी की खुसबू

हिरदय नहीं वह पत्थर है जिसमे सव्देस का प्यार नहीं
जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महँ है
वास्तव में जिस धरती पर हम जन्म लेते है
जिस पर पल कर बड़े होते है उसके प्रति स्नेह उत्पन्न होना चाहिए ।
जिसके मिटी से हमारा शारीर बना है
उसका ऋण हम कभी भी चूका सकते है
यदि हम देस के संस्कृति ,परम्पराओ, प्रकृति सोंदर्य में अपना मन रमाये ।
यहाँ के ज्ञान को समझे तो हमारे भीतर देस के प्रति लगाव बढ़ेगा ।
देस्भक्ति की भावना बढ़ेगी ।
हमारा प्रत्येक काम स्वार्थ हित न होकर देसौन्मुख होता है।
यह हमारा कर्त्तव्य है कि जो धरती हमारा पालन करती है ।
उसके प्रति प्रेम को हम प्रदर्शित करे
और सबके हित में सोचे ।
सायद अब समय फिर से आ गया है कि हम सब मिलकर अपने देस के प्रति सोचे
क्योकि अब न रहीम आएगा न राम आएगा ।
इन्सान ही इन्सान के काम आयेगा ।

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